उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अधिनियम: सुप्रीम कोर्ट ने मामले रद्द किए

उत्तर प्रदेश में हिंदुओं के बड़े पैमाने पर ईसाई धर्म अपनाने के आरोपों से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आपराधिक कानूनों का इस्तेमाल निर्दोष लोगों को परेशान करने के हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में 2021 में लागू किए गए गैरकानूनी धर्मांतरण निवारण अधिनियम के तहत ये मामले रद्द किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति राजेंद्र बिहारी लाल सहित कई लोगों के नाम दर्ज मामलों को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये ऐसे मामले हैं जो प्रक्रियात्मक त्रुटियों और सबूतों के अभाव के कारण कमजोर हो गए हैं। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में कार्यवाही जारी रखना अदालत की अवमानना के समान होगा।
दिसंबर 2021 से जनवरी 2023 के बीच भारतीय दंड संहिता और धर्मांतरण निरोधक अधिनियम के तहत छह प्राथमिकी दर्ज की गईं। अप्रैल 2022 में विश्व हिंदू परिषद के एक नेता ने एक मामला दर्ज कराया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि पुण्य गुरुवार को इवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया में आयोजित एक समारोह में 90 हिंदुओं का ईसाई धर्म में धर्मांतरण किया गया। विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष हिमांशु दीक्षित ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि पैसे का लालच और धमकी देकर धर्मांतरण कराया गया।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्मांतरण का दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति 14 अप्रैल, 2022 को, जब कथित तौर पर यह घटना हुई थी, मौजूद नहीं था। पीठ ने कहा कि उनका अवैध धर्मांतरण नहीं हुआ था।
What's Your Reaction?






